चंद्रयान मिशन: भारत की चाँद तक उड़ान

चंद्रयान मिशन भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम में एक मील का पत्थर है, जिसने देश को वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में भारत को एक नई पहचान दी। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) द्वारा संचालित, यह मिशन चंद्रमा की सतह पर पानी और खनिजों की खोज, चांद की संरचना को समझने , चाँद पर वातावरण और मिट्टी का अध्ययन। इस मिशन को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अध्ययन करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

चंद्रयान-1, 2008 में लॉन्च हुआ, और भारत का यह पहला चंद्र मिशन था। इसने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि की, जो अंतरिक्ष विज्ञान में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद चंद्रयान-2, 2019 में लॉन्च किया गया। इसमें ऑर्बिटर, लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ शामिल थे। हालांकि विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग सफल नहीं हो पाई। फिर भी यह ऑर्बिटर में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारी इकट्ठा की और आज भी चंद्रमा की कक्षा में कार्यरत है।

चंद्रयान-3, 2023 में सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा, जो अब तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सबसे कठिन और दुर्गम माना जाने वाला जगह है। इससे भारत ने चांद के इस रहस्यमय क्षेत्र में पहुंचने वाला पहला देश बनने का गौरव हासिल कर लिया है। भारत का यह मिशन न केवल तकनीकी उत्कृष्टता का प्रमाण है, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता और आत्मनिर्भरता को भी दर्शाता है।

चंद्रयान मिशन ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी देशों की श्रेणी में ला कर खड़ा कर दिया है, और भारत के महत्वपूर्ण संस्थान इसरो की वैज्ञानिक उपलब्धियों का एक सुनहरा अध्याय लिखा है।

चंद्रयान – 3 मिशन में GSLV Mk III (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III) रॉकेट का उपयोग किया गया था। वैज्ञानिकों के अनुसार इसे अब LVM-3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3) भी कहा जाता है। यह इसरो का सबसे बहुत ही शक्तिशाली और उन्नत रॉकेट है, जिसे भारी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा और उससे आगे अंतरिक्ष में भेजने के लिए डिजाइन किया गया है।

विशेष रूप से चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 मिशनों के लिए GSLV Mk III का उपयोग किया गया था। यह रॉकेट तीन चरणों में कार्य करता है:

पहला चरण: ठोस ईंधन बूस्टर (S200) से संचालित होता है।
दूसरा चरण: तरल ईंधन कोर (L110) से चलता है।
तीसरा चरण: क्रायोजेनिक इंजन (CE-20) से काम करता है, जो तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का उपयोग करता है।
GSLV Mk III की खासियत यह है कि यह भारी पेलोड को अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है, जो इसे चंद्रमा और गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए उपयुक्त बनाता है।

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